कोरोना संकट में किसान देश के साथ मजबूती से खड़ा है। दिन रात मेहनत कर देश के लिए अन्न के भंडार भर रहा है इसके बाद भी सरकार राहत पैकेज के नाम पर सिर्फ लोन मेला लगाती हुई दिख रही है। "आत्मनिर्भर भारत अभियान" के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 20 लाख करोड़ रू. के पैकेज की घोषणा की गयी। जब देश के उद्योगपतियों के 68 हजार 700 करोड़ रू. के कर्ज को राइट ऑफ यानी बटटे खाते में डाल दिया गया तो किसान को भी इस विषम परिस्थिति में इतने बड़े आत्म निर्भर पैकेज से बड़ी उम्मीद जगी।
तमाम तरह के किसान संघटनों ने सरकार से मांग की कि किसान को डायरेक्ट इनकम सपोर्ट के तहत पैसा दिया जाए, लघु और सीमांत किसानों के फसली लोन को कर्ज मुक्त किया जाय, किसानों के कर्ज का ब्याज माफ किया जाए। राहत पैकेज में वित्त मंत्री द्वारा संकट में फसे किसान के हाथों में सीधे नगद हस्तांतरण के लिए कोई विशेष उपाय दिखाई नहीं देते हालांकि इसी पैकेज से किसान सम्मान निधि के तौर पर किसानों के खातों में 18 हजार 700 करोड़ रुपए जरूर डाले गए जो योजना के तहत अप्रैल-जून तिमाही का पहले से ही बकाया था।
कोविड 19 संकट और लॉकडाउन के चलते पूरे देश में पेरीशेबल खाद्य पदार्थों यानी जल्दी खराब होने वाले खाद्य पदार्थों जैसे फल, फूल, सब्जी, दूध और मछली पालन के किसानों को काफी हद तक आर्थिक हानि उठानी पड़ी है। कम मांग और सप्लाई ने होने की वजह से फल और सब्जियों की बड़े पैमाने पर हुई बर्बादी से किसानों को हर महीने 20 हजार करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान है इसके साथ ही दुग्ध उत्पादकों को लगभग 10 हजार करोड़ का नुकसान माना जा रहा है। पिछले साल के आंकड़ों की बात करें तो 2019-20 में 5 लाख करोड़ रुपए के फल एवं सब्जियों का उत्पादन रहा जिसमें 9.57 करोड़ टन फल और 18.80 करोड़ टन साग-सब्जियों का उत्पादन रहा था।
कृषि क्षेत्र के लिए जिस राहत पैकेज की घोषणा की गयी है वह दरअसल कर्जा पैकेज ही कहा जा सकता है जिसमें 2 लाख करोड़ रू.के कनशेसनल क्रेडिट बूस्ट का ऐलान किया गया है जिसमें पशु पलकों, मछुआरों को कम ब्याज पर कर्ज दिया जाएगा। नाबार्ड के जरिए सहकारी और ग्रामीण बैंकों को 29 हजार 500 करोड़ रू. दिए गए। 1 लाख करोड़ से कृषिगत ढांचा विकसित किया जायेगा जिसमें कोल्ड स्टोरेज, यार्ड, फूड प्रोसेसिंग को बढ़ाने पर जोर दिया जायेगा। किसान की फसल की खरीद के लिए राज्य सरकारों की खरीद फर्मों को 6 हजार 700 करोड़ रू. की सहायता की गयी है।
मधुमख्खी पालन के लिए 500 करोड़ रु. एवं औषधीय खेती के लिए 4 हजार करोड़ रु. का ऐलान किया गया है, सूक्षम खाद्य उपक्रमों को बढ़ावा देने के लिए 10 हजार करोड़ रू. का आवंटन किया गया है। किसान क्रेडिट कार्ड के लिए 2 लाख करोड़ रू. की घोषणा की गई है जिसमें 25 लाख नए किसान क्रेडिट कार्ड धारकों को शामिल करने की बात है। मोटे तौर पर देखा जाए तो ये वही घोषणाएं है जो वित्त मंत्री पिछले बजट भाषण में शामिल कर चुकी है।
सरकार ने किसान के क्रॉप लोन की देनदारी को तीन महीने बढ़ाकर 1 मार्च से 31 मई 2020 तक किया गया है जिससे किसानों को थोड़ी राहत जरूर मिलेगी साथ ही लॉकडाउन के दौरान फसल बीमा योजना के तहत 6400 करोड़ रू. की सहायता सरकार का साराहनीय कदम माना जा सकता है।
लॉकडाउन में फसल पर लगाई किसान की पूंजी की हानि हुई है इस वर्ष बेमौसम बारिश और ओले गिरने से ये नुकसान और बढ़ गया है। कोरोना संकट के बाद कृषि क्षेत्र की नीतियों में अपेक्षित बदलाव की जरूरत थी जिसमें सरकार की सबसे पहले प्राथमिकता थी की किसान की रबी उपज का सही दाम मिले, कम से कम न्यूनतम समर्थन मूल्य तो मिले पर मोजुदा समय में किसान गेंहू, चना, सरसों आदि को औने- पौने भाव में बेचने के लिए मजबूर हो रहा है।
आत्मनिर्भर भारत अभियान पैकेज से भविष्य में सभी को जरूर फायादा होगा पर मौजूदा समय में किसान को डायरेक्ट इनकम सपोर्ट की जरूरत है जो दिये गए राहत पैकेज से दूर की कौड़ी ही लगती है।