कोरोना वायरस ने भारतीय फिल्म उद्योग को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। जिस समय कोरोना भारत में पैर पसार रहा था, दो हिन्दी फिल्मों ‘अंग्रेज़ी मीडियम‘ और ‘बागी-3‘ को बहुत बड़ा नुकसान हुआ क्योंकि सरकार के निर्देशों के बाद सिनेमा हॉल बंद कर दिए गए थे। दोनों ही फिल्मों की ओपनिंग अच्छी थी और आगे जाकर हिट होने की पूरी संभावनाएं लग रही थी लेकिन कोरोना ने सारा खेल बिगाड़ दिया। अब सिनेमाघरों के साथ फिल्म उद्योग का भविष्य भी दांव पर लगा हुआ है।
कुछ तय नहीं है कि अधूरी पड़ी फिल्मों की शूटिंग कब शुरू होगी और रिलीज के लिए तैयार फिल्मों की राह कब खुलेगी। ऐसे में फिल्म निर्माता अब ओटीटी प्लेटफॉर्म (OTT- Over the top) पर अपनी फ़िल्में प्रदर्शित करने का मन बना रहे हैं।
ये प्रश्न बहुत परेशान करने वाला है कि सेल्युलाइड के बड़े परदे पर हिन्दी फ़िल्में जो तिलिस्म पैदा करती हैं, क्या वह तिलिस्म मोबाइल के छोटे से स्क्रीन पर पैदा हो सकेगा। ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दर्शकों का एक विशेष वर्ग तैयार हो गया है, जो ख़ास तरह की फ़िल्में देखना पसंद करता है। इस प्लेटफॉर्म पर वर्तमान में क्राइम थ्रिलर ज्यादा देखे जा रहे हैं, खास तौर पर इनमे सेक्स का तड़का दर्शकों को ज्यादा पसंद आ रहा है।
इस प्लेटफॉर्म पर सेंसरबोर्ड की आपत्तियां बेअसर हैं इसलिए यहाँ प्रदर्शित होने वाली फिल्मों में उन्मुक्त दृश्य ज्यादा से ज्यादा भरे जाते हैं। दरअसल एक नैरेटिव सेट हो गया है कि इस प्लेटफॉर्म पर अधिकाधिक फ़िल्में ऐसी ही होंगी, जिनमे काल्पनिक हिंदू आतंकवाद, अंडरवर्ल्ड के अपराध और गर्म उन्मुक्त सेक्स दृश्यों की भरमार होगी। हम देख पा रहे हैं कि इस प्लेटफॉर्म पर अधिकांश फ़िल्में ऐसी ही विषयवस्तु की होती हैं
‘सेक्रेड गेम्स‘ की सफलता ने ओटीटी प्लेटफॉर्म पर तय कर दिया था कि भारतीय दर्शक अब उन्मुक्त फ़िल्में देखना चाहता है। इसके बाद आई ‘मिर्जापुर‘,‘मेड इन हैवन‘,‘लेडीज रूम‘,‘रंगबाज‘,असुर आदि फिल्मों में लगभग ऐसे ही विषय देखने को मिले। अब जब फिल्म उद्योग के बड़े फिल्म निर्माता अपनी फिल्मों की रिलीज के लिए इस प्लेटफॉर्म की ओर आशाभरी निगाहों से देख रहे हैं तो उन्हें देखना होगा कि कहीं वे बड़ी गलती तो नहीं करने जा रहे हैं।
रणवीर सिंह की ’83’ को वेब के लिए 134 करोड़ का ऑफर था लेकिन निर्माता ने मना कर दिया। ऐसा ही ऑफर अक्षय कुमार की ‘सूर्यवंशी’ के लिए भी था लेकिन निर्माता ने इंकार कर दिया। चालीस करोड़ की फिल्म को ओटीटी पर साठ करोड़ पहले ऑफर में ही मिल रहे हैं लेकिन बड़े निर्माता अब भी इसके लिए तैयार नहीं हैं।
अमिताभ बच्चन और आयुष्यमान खुराना की फिल्म ‘गुलाबो सिताबो’ को ओटीटी पर रिलीज किये जाने पर निर्माताओं में सहमति बन गई है। टाइगर श्रॉफ की ‘बागी-3’ भी जल्द ही इस प्लेटफॉर्म पर रिलीज होने जा रही है। अनिल कपूर और आदित्य राय कपूर की ‘मलंग’ इस समय नेटफिल्क्स पर सबसे टॉप पर चल रही है।
कोरोना काल को ओटीटी प्लेटफॉर्म एक बड़े अवसर के रूप में देख रहा है। कोशिश यही है कि बड़े निर्माताओं को भारी कीमत देकर इस प्लेटफॉर्म पर लाया जाए लेकिन बड़े निर्माता अब भी हिचक रहे हैं। जैसे आदित्य चोपड़ा जल्दबाजी न कर प्रतीक्षा कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि बड़े बजट की फिल्मों को सिनेमाघर ही लाभ से सकते हैं और वैसे भी फिल्मों की कमाई का साठ प्रतिशत तो सिनेमाघरों से ही आता है।
ये अवश्य हुआ है कि तीस से चालीस करोड़ बजट की फ़िल्में बनाने वाले निर्माता ओटीटी पर जाने का निर्णय ले चुके हैं क्योंकि बड़े निर्माताओं की तरह वे रिलीज के लिए अधिक प्रतीक्षा नहीं कर सकते।
सिनेमाघरों की एक परंपरा रही है, जो टूटनी नहीं चाहिए। परदे पर चलते दृश्य और दर्शकों की जोशीली प्रतिक्रियाएं कभी ओटीटी पर मिल नहीं सकती। किसी भी फिल्म निर्माता के लिए दर्शकों की भीड़, टिकट विंडो पर लगती बड़ी कतारें अत्यंत आवश्यक है। इन्हीं से सिनेमा का तिलिस्म ज़िंदा है।
ये तिलस्म ओटीटी पर कभी नहीं मिल सकता। कोरोना काल के बाद ये वातावरण पुनः निर्मित होने में समय लग सकता है। तब तक बड़े निर्माताओं को घर बैठ बड़ा नुकसान झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए। सूर्यवंशी और 83 ओटीटी पर बड़ी हिट हो सकती है लेकिन ये सफलता न निर्देशक के यश में वृद्धि करेगी और न सितारों की इमेज को बड़ा करने वाली है। कहने का सीधा मतलब है कि फिल्मों को बड़ा एक्सपोजर चाहिए, छोटा सा मोबाइल का स्क्रीन नहीं। ओटीटी छोटे बजट की फिल्मों के लिए वरदान है तो बड़ी फिल्मों के लिए अभिशाप भी हो सकता है।
Courtsey; IDS