सरकारी दावे की कलई खोल रहा असहाय आनंद मिश्र का परिवार अत्यंत मार्मिक कष्ट

प्रतापगढ़ "उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के पट्टी तहसील में कहते है कि इंसान हौसले के दम पर कुछ भी कर सकता है। क्योंकि जब आपके पास कोई नहीं होता तो हौसला आप का सबसे बड़ा साथी होता है। लेकिन जिंदगी हौसला ही झकड़ ले तो इंसान कुछ नहीं कर सकता। ऐसा ही हाल है पट्टी विकास खंड के पूरे सनाथ चरैया निवासी आनंद मिश्र का मेहनत मजदूरी कर दो वक्त की रोटी का बंदोबस्त कर रहे आनंद के परिवार की खुशियों पर छह साल पहले ऐसा ग्रहण लगा कि जीवन भर की जमा पूंजी दांव पर लग गई। ब्लड कैंसर से पीड़ित आनंद के इलाज में जमीन बिक गई और घर गिरवी चढ़ गया।



इससे अब पूरा परिवार पाई-पाई को मोहताज हैं। बेटियां पढ़ना चाहती हैं, लेकिन पिता की लाचारी के चलते उन्हें अपनी कलम की कुर्बानी देनी पड़ रही है। प्रशासनिक गलियारों से लेकर हर कहीं भटकने के बाद उसे निराशा ही हाथ लगी है। बेटियों को शिक्षा दिलाने व खुद का इलाज करवाने में लाचार आनंद ने डीएम को प्रार्थना पत्र देकर परिवार सहित आत्मदाह की चेतावनी दी है। 


पट्टी कोतवाली क्षेत्र के पूरेसनाथ चरैया निवासी कमल देव का बेटा आनंद कुमार मिश्र सूरत में रहकर मील में नौकरी करता था। छह साल पहले उसे पेट दर्द की शिकायत हुई तो वह घर चला आया। काफी इलाज के बाद भी उसे आराम नहीं मिला। कुछ खाने पीने में भी उसे तकलीफ होती थी, इससे दिन प्रतिदिन उसकी हालत बिगड़ती चली गई। इस दौरान आर्थिक तंगी के चलते इलाज में लापरवाही आनंद के लिए काली छाया बन गई।


बाद में रिश्तेदारों की मदद से उसे मेडिकल कालेज लखनऊ में भर्ती कराया गया। वहां उपचार के दौरान डॉक्टरों ने आनंद को ब्लड कैंसर से ग्रसित बताया तो परिजनों के पैरों तले जमीन खिसक गई। धीरे-धीरे माली हालत से कमजोर आनंद के उपचार में पत्नी नीलम के जेवर व जमीन बिक गई और घर गिरवी चढ़ गया। रिश्तेदारों ने भी मदद को हाथ खड़े कर दिए। कच्चा मकान भी इस बरसात में धराशाई हो गया। अब इस परिवार के पास न तो रहने के लिए घर है और न खाने के लिए दाना। इलाज तो दूर की बात है।


आनंद को अपनी बीमारी से ज्यादा गम इस बात का है कि इस आर्थिक तंगी में बेटियों को कलम की कुर्बानी देनी पड़ रही है। पिछले साल फीस जमा न होने के चलते बड़ी बेटी रश्मि का दसवीं में एडमिशन नहीं हो सका। इस वर्ष फीस जमा ना होने के कारण दूसरे नंबर की बेटी सारिका का दसवीं तथा सबसे छोटी बेटी निधि का आठवीं में एडमिशन नहीं हो पा रहा है। बेटियां पढ़ना चाहती है, लेकिन पिता की लाचारी देख उनकी पढ़ाई की उम्मीदें अब टूटने लगी हैं। वैसे तो प्रदेश सरकार का दावा है कि हर गरीब को उसकी बुनियादी सुविधाएं मिल रही है, किंतु इस असहाय परिवार को आज तक किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल सका है। शिक्षा से महरूम इन बेटियों के लिए केंद्र सरकार का बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा भी बेमानी साबित हो रहा है। 


बेटियों की शिक्षा पर भारी पिता की बीमारी पिता की लाचारी के चलते बेटियों को देनी पड़ रही कलम की कुर्बानी प्रशासन की उदासीनता से कैंसर पीड़ित पूरेसनाथ निवासी आनंद मिश्र ने दी परिजनों के साथ आत्मदाह की चेतावनी." यह 2016 में खबर प्रकाशित हुई थी पर समय के साथ सब भूल गए."


आज 2 साल हो गए आनन्द मिश्रा इस दुनिया में नही है कुछ मदद के बावजूद परिवार में कोई खास बदलाव न आ पाया क्योंकि मदद को जो हाथ थे वो गिने-चुने थे अगर हाथों की संख्या ज्यादा होती तो आज परिवार उस गरीबी व लाचारी से उबर गया होता व उस इंटर कॉलेज के लोग बेटियों से पिछले कुछ सालों की फीस न मांगते जो उन्होंने उस समय मीडिया में माफ् करने को कहा था।


आज परिवार तनाव में है अकेला बेटा सर्वेश रातभर सो नही पा रहा है अभी फोन आया तो 5 किलो अरहर की दाल का पैसा गूगल pay किया हूँ. सर्वेश कहते है बहने कहती है भैया आप हमारी शादी की चिंता मत करना हम कमाकर खुद सबकुछ करेगे पर हालात बुरे है।


इस परिवार के लिये कुछ कर सकते तो सामाजिक सन्गठन व अन्य सक्षम लोग आगे आये यह अपने लोग है इन्हें ऐसे कष्ट में अकेला नही छोड़ा जा सकता उस परिवार की मानसिक स्थितियो का अंदाजा लगाइए जहाँ बिना बाप की तीन बेटियों को रेप की धमकियां आ रही है तो विधवा माँ औऱ बेटों को पैसों के लिये रोज तोड़ा जा रहा जा है जिस जमीन की कीमत 60 लाख है उसे कुछ कर्ज में दिये पैसों के बदले कब्जाने का प्रयास है जिसके मनमुताबिक ब्याज जोड़ा जा रहा है। 


किसी की सहायता करना एक जीवन का हिस्सा है यह कोई बहुत बड़ा कार्य नही पर कभी-२ हालात ऐसे हो जाते है कि यह बताना आवश्यक हो जाता है ताकि लोगो मे थोड़ी मानवता तो बची रहे.


सर्वेश का मुझे भेजा msg पढ़िए हालात का अंदाजा लगाइए जहां सर्वेश की माँ की आंखे सिर्फ इसलिए भर आईं और मुझे शुभकामनाएं दी जो मैंने 5 किलो दाल का दिलवाया तो सर्वेश ने बहनों की फोटो भेजकर ये बताया कि बहनों को किस तरह परेशान किया जा रहा है।


इस हालात पर पिता के जाने के बाद मानसिक व सामाजिक रूप से प्रताड़ित हो रहा परिवार कितने दिन टिक सकता है आप बताइए ?