सन्दर्भ पलामू: हमदर्दी का मुखौटा पहने मतलबी जन प्रतिनिधि

जी हां मैं बात कर रहा हूं उन लोगो की जो आज सोशल मीडिया पर प्रवासी मजदूरों की स्थिति पर मगरमच्छ की आंसू बहा रहे हैं और सरकार को गलत ठहरा कर अपने दायित्वों से मुकर रहे हैं। जरा याद कीजिए उस चुनावी दौर को चाहे ओ पंचायत का चुनाव हो, नगर पंचायत, नगर निगम, विधान सभा या लोक सभा का चुनाव हो, याद कीजिए उनको जो खुद को आपका शुभचिंतक और आपका रहनुमा बताते थकते नहीं थे।



दिन में कई बार आपके घर पहुंच आपको झुक कर सलाम करते और खुद को आपका भाई, बेटा, भतीजा तो पोता बता कर अपने कर्तव्यों का हवाला देकर आपके सुख - दुख में साथ रहने और साथ देने की बात करते थें । याद कीजिए कि आपके क्षेत्र से कितने प्रत्याशी थे और आपके गांव - मुहल्ले से कितने मजदूरों के घरों के चूल्हे ठंडे पड़े है या आपके क्षेत्र से कितने ऐसे प्रवासी मजदूर हैं जो भुखमरी की स्थिति का अनुभव करते हुए जान जोखिम में डालकर पैदल अपने गांव की ओर चल दिए।


क्या कभी किसी ने उन्हें आर्थिक मदद पहुंचा कर उन्हें रोकने की कोशिश की ? क्या कभी किसी ने उन्हें घर वापस बुलाने के लिए ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था करने की कोशिश की जैसा की चुनावी रैलियों में किया करते थें ? क्या कभी किसी ने आपके घर के ठंडे चूल्हे की हालत जानने या मदद पहुंचने की कोशिश की जी खुद को अपना शुभचिंतक बताते थें? मैं स्पष्टतः उन सभी की बात कर रहा जो विगत कई चुनावों में विजेता, उपविजेता या पराजित रहे हैं । 


सावधान रहिए, फिर ओ घड़ी दूर नहीं जब लोकतंत्र को महापर्व बताकर आपसे मीठी - मीठी बातें करके आपसे आपका बहुमूल्य वोट मांगने आएंगे और एक बार नहीं कई बार आएंगे चाहे दिन का कोई पहर हो या रात की कोई पहर हो । अभी समय है पहचानिए उस चेहरे को जो आपका वास्तविक शुभचिंतक है जो इस महामारी और विपदा की घड़ी में आपके चेहरे पर मुस्कुराहट लाने की कोशिश कर रहा है।


उन्हें भी पहचानिए जो अपना पूरा वक्त सरकार को दोषी ठहराकर अपनी जिम्मेवारियों से भागने की कोशिश कर रहे हैं । और कुछ याद रखने की आदत डालिए । इनके द्वारा प्रस्तावित मैनिफेस्टो तो आप भूल ही जाते हैं, लेकिन अब इनके इरादों को पहचानिए और इसे मत भूलिए । आप उन्हें भी मत भूलिए जो चुनावी दौर में हमेशा आपकी कुशलक्षेम पूछकर आपको कुछ खिला देते हैं, कभी कभार आपके लिए पानी की बोतल मंगवा लिया करते हैं । क्या आज उन्होंने आपके लिए फूड पैकेट भेजने या पहुंचाने कि कोशिश किया ?


अगर किया तो वे वाकई में नायक है, योद्धा है जो आपके सुख - दुख में हमेशा भागीदार रहेंगे । लेकिन अगर ऐसा कुछ नहीं किया तो यह भी समझा जा सकता है की कल वे अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए आपकी खातिरदारी कर रहे थे और आज उन्हें आपकी कोई जरूरत नहीं । हां अगर इस विपदा की घड़ी में अगर ऐसे मतलबी लोगो के पास कुछ है तो वह है सिर्फ संवेदना और मगरमच्छ की आंसू।


फिलहाल आपको भी इसका आदि होना होगा, उनकी संवेदना प्राप्त करने का उनके मीठी बातो को सुनने का। तभी आप अंतर स्पष्ट कर पाएंगे एक सच्ची संवेदना और एक दिखावटी संवेदना में। आप उपर्यक्त सभी तथ्यों को याद रखिए  इसी में आपके, आपके परिवार व आपके समाज की तरक्की है । मुसीबतों में ही अपने और पराए का फर्क समझ आता है । निसंदेह यह कोरोना नामक बीमारी कई सारे सवालों व संदेहों पर से पर्दा उठाकर एक सबक देने वाला साबित होगा क्योंकि यह एक घातक व वैश्विक महामारी के साथ - साथ एक शिक्षक की भी भूमिका में नजर आ रहा है।


इसे भी एक सार्थक हथियार के रूप में देखा जा सकता है जो कई झूठे रिश्तों को और मूखौटों को खतम कर सच का आइना दिखाएगा। बहरहाल, मैं उन सभी लोगों ( समाजसेवी, जन प्रतिनिधि, पूर्व प्रत्याशी, प्रशासनिक कर्मी, चिकित्सा कर्मी, सफाई कर्मी, मीडिया कर्मी तथा अन्य ) के प्रति सहृदय आभार व्यक्त करता हूं जिन्होंने इस विपदा की घड़ी में इंसानियत को प्राथमिकता देते हुए अपनी जान की परवाह ना करते हुए अनवरत अपनी सेवा इस वैश्विक महामारी से निजात दिलाने में सुनिश्चित कर रखा है ।


इस आलेख के लेखक अमित गुप्ता पलामू के मेदिनीनगर शहर में संचालित एलबीएस स्कूल से जुड़े हैं।