पलामू: कुम्हार सभी जातियों में एक महत्वपूर्ण जाति है। काल व युग का गणना करें तो सतयुग श्रवणकुमार के महेर,त्रेता में राम के पैदायसी का खीर,द्वापर में कृष्ण का मक्खन,भक्ति काल में कबीर का कुम्हार,आधुनिक काल मे रजनीश के माटी कहे कुम्हार से।पूरी दुनियां के उन्नत व विकसित सभ्यता का प्रमाण मोहनजोदड़ो हड़प्पा संस्कृति में माटी का भांड।
इतिहास गवाह है चाक के आविष्कार से ही मानव सभ्यता के क्रमिक विकास में क्रांति आया।कृषि, पशुपालन और माटी के बर्तन ही मुख्य रूप से आर्थिक आधार था। आज भी माटी के बर्तन बिना संस्कार संस्कृति स्वास्थ्य अधूरी है। आदिम युगीन तमाम तथ्यों के बावयुद कुम्हार पीछे व हासिये पर है!इसका जवाबदेह कौन है? राजनीतिक हिंसा का शिकार कुम्हार चिलचिलाती धूप,तपती धरती के साथ अपने पेट-परिवार पालने के लिए ख़ुद से संघर्ष कर रहा है।
कोई राजनेता या राजनीतिक पार्टी पूछने वाला नहीं है। जब आज माटी शिल्पकार से मुलाक़ात हुई हाल-ए-बयान लिया तो पूरा भरोसा दिलाया वर्तमान सरकार से मुलाक़ात कर हर सम्भव सुविधायुक्त संसाधन उपलब्ध कराने का कोशिश करूंगा। माटीकला बोर्ड को भी अधिकार संम्पन नहीं बनाया गया जीसे आधारभूत संरचना जमीन पर नहीं दिख रहा है।
लॉक डाउन समाप्ति के बाद कुछ अलग दिखेगा। कोरोना वायरस से बचना है सरकार एवं स्वास्थ्य विभाग के नियमों को पालन करना है। नगर निगम से जल्द बात कर विक्री केंद्र,कच्चा माल व ईंधन उपलब्ध कराया जायेगा। जबतक मेरा नेतृत्व रहेगा शिल्पकार कलाकार के लिए संघर्षरत रहुंगा।